जनाब मत पूछिए हद हमारी गुस्ताखियों की ,
हम आईना ज़मीं पर रखकर आसमां कुचल दिया करते है..........
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इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर ” ऐ बेखबर “
शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के
हैं।...........
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खून अभी वो ही है
ना ही शोक बदले ना ही जूनून,
सून लो फिर से,
रियासते गयी है रूतबा नही,
रौब ओर खोफ आज भी वही हें ...........
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जीत हासिल करनी हो तो काबिलियत बढाओ,
किस्मत की रोटी तो कुत्तेको भी नसीब होती है...........
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उसने कहा मत देख मेरे सपने,
मुझे पाने की तेरी औकात नही
मेंने भी हस कर कहा...........
पगली आना हो तो आजा मेरे सपनो मे
हकीकत मे आने की तेरी औकात नही...........
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इसी बात से लगा लेना मेरी शोहरत का अन्दाजा…
वो मुझे सलाम करते है, जिन्हे तु सलाम करता हैं...........
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वो तरस जाएँगी प्यार की एक बूँद के लिए;
मैं तो बादल हूँ किसी और पे बरस जाऊंगा...........
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ओरों की जमीन सिर्फ जमीन हे
और ;
हमारी जमीन एक गरदिश...........
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अगर परछाईयाँ कद से और बाते औकात से बडी होने लगे ;
तो समझ लो कि सूरज डूबने ही वाला है...........
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उनको डर है कि हम उन के लिए जान नही दे सकते,
और मुझे खोफ़ है कि वो रोएंगे बहुत मुझे आज़माने के बाद ..........
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दूर जा रहे हो तो सोंक से जाना ,.
बस इतना याद रखना ;
पीछे मुड़ने के देखने की आदत ईधर भी नही हे...........
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अपुन की जिंदगी ताश के इक्के की तरह हे ,
जिसके बगेर रानी और बादशाह भी अधूरे हे ...........
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जिसे आज मुजमे हजार एब नजर आते हे ,
कभी वही लोग हमारी गलती पे भी ताली बजाते थे...........
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वो जिस गली की रानी होने का गुरुर करती हे ,
नादान हे , इतना भी नही जानती !
उस सहेर के तो हम बादशाह थे ;
फर्क सिर्फ इतना था की हमने लोगो के दिलों पे राज किया..........
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ना पूछ मेरे सब्र की इन्तहा कहाँ तक है,
तू सितम कर ले तेरी ताक़त जहाँ तक है...........
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हजारों चेहरों में उसकी झलक मिली मुझको…
पर. दिल भी जिद पे अड़ा था कि
अगर वो नहीं ,तो उसके जैसा भी नहीं...........
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हक़ से दो तो तेरी नफरत भी कुबूल है हमें ,
खैरात में तो हम तुम्हारी मोहब्बत भी न लें ...........
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आहिर हाथ किसी का थामकर छोङते नहीँ…
वादा अगर किसी से करे तो तोङते नही..
अगर तोङ दे दिल कोई आहिर का,
तो बिना हाथ पैर तोङे छोङते नही...........
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लोग कहते है …
तुजे तेरी “आहिर गीरी” एक दिन मरवायेंगी,
मेने प्यार से कहां कया करु ?
सबको आती नहि और मेरी जाती नहि...........
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बेशक ताज के पत्तों में लाखों गवा दिये,
पर रुतबा आज भी ईतना है कि,
बेगम आज भी हमारे ईशारो पे चाल चलती है...........
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हम वफा की दुनिया के बादशाह हे ,
और …
हमारी रियासत में बेवफा को मुजरा करने की भी इजाजत नही मिलती,
फिर चाहे वो रानी हो या राजकुमारी ...........
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नीलाम कुछ इस कदर हुए,
बाज़ार-ए-वफ़ा में हम आज,,
बोली लगाने वाले भी वो ही थे,
जो कभी झोली फैला कर माँगा करते थे...........
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मिल सके आसानी से…
उसकी ख्वाहिश किसे है?
जिद्द तो उसकी है…
जो मुकद्दर में लिखा ही नही है...........
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आज़ाद कर दूंगा तुमको अपनी मुहब्बत की क़ैद
से ,
करे जो हमसे बेहतर तुम्हारी क़दर पहले वो शख्स
तो ढूँढो...........
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दुआओ को भी अजीब इश्क है मुझसे…
वो कबूल तक नहीं होती मुझसे जुदा होने के डर से ...........
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जुक के बात करने की आदत बना ले ,
काफी फायेदे में रहोगे ;
क्युकी ….
आज भी आँखे मिला कर बात करने की तेरी औकात नही हे...........
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